सपने हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोयी आग को सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुई हथेली पर आए
पसीने को सपने नहीं आते
शैलफों में पड़े इतिहास के
गंथों को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाज़मी है
सहनशील दिलों का होना
सपनों के लिए नींद की नज़र होनी लाज़मी है
सपने इसलिए सभी को नहीं आते
(इस कविता का नाम नहीं दिया था पाश ने अगर दिया होता तो शायद यही होता)
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